एक कटी पतंग की जैसी डोर
उड़ रहे हैं हम जाने किस ओर
कभी ऊँचे पेड़ो से तकराकर लहराते
तो कभी हवा के तेज़ झोकों से आज़ाद हो जाते
हैं सफ़र यह निरंथर, न रुखेगी कभी
जो मिली कुशी, तो लगे जिंदगी
और कही मिले निराशी, तो लगे बंदगी
लो बन के अरमान, हम उड़ चले
चार अक्षर ही लिखे ते नए पन्ने पर
फिर आया बुलावा - एक आवाज़ ऐसी
न चेहरा ता और न थी कोई दिलचस्पी
जब समज आया की बहुत देर हो चुकी
लो फिर निकल लिए हम बोरिया भांद कर
नए राहें और नए मंजिलों के खोज पर
एक कटी पतंग की जैसी डोर
उड़ रहे हैं हम जाने किस ओर. . .
6 comments:
bahoot khoob!
haan life to kati patang ki dor hi hai.
keep running and keep rocking :)
nice attempt that too in Hindi. keep them coming...
Anon
Shukriya!
Abhinav
:)touche!
Prasant
am trying some Hindi..my second innings in blogosphere must be hatke:)
bahut badiya Vinni ji, saanathe ke baad bhi app ki awaz atti, patang kahi aur door kahi aur jatti, isse andaz ke kaaran app humein bhaati hai..... i am still confused with the 3rd para......
Regards,
Nikholic
Nikholic
thank u!
third para mein, i am trying to say that i had just found a little comfort zone n got anchored, when u came n called me away...i wanted to see who u r, but i lost interest when i realised it was too late....i have to keep floating...
hope ur not confused anymore:)
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