नन्हे क़दमों से शुरू किये
जो सफ़र कोमल हाथों के सहारे
लो आज मांगे साथ दुबारा
तुम नहीं तो जग बेगाना
फिर आ कड़ी हूँ मैं चौराहे पर
किस राह पर मंजिल लिखी हैं ?
काले बादलो से लगता हैं दर
तुम्हारे आँचल में समेट, होना हैं बेफिकर
याद हैं मुझे वो एक रूपये का सिक्का
रोज जमा कर मुझे अमीर बना देना
कब बन गयी तीन रूपये का जुगाड़
कर दिया हर नसीयत तेरी बिगाड़
लो कहो ' फिर कर शुरुवात...'
ख्वाब शीशों का नहीं, यकीन दिला दो
तुम्हारी छोटी छोटी बातों में छिपा हैं खज़ाना
लो आज मांगे साथ दुबारा
तुम नहीं तो जग बेगाना . . .
Pic courtesy : http://tweetymom.files.wordpress.com